Shivraj Singh Chouhan
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26 September 2025 at 06:00 pm IST

नई दिल्ली में विकसित भारत 2047 को लेकर आयोजित नेशनल कॉन्फ्रेंस में केंद्रीय मंत्री जी के प्रमुख भाषण बिन्दु

Speech Transcript

नई दिल्ली: कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और किसान उसकी आत्मा है। कृषि मंत्री के रूप में किसानों की सेवा मेरे लिए भगवान की पूजा है। वो दौर याद करो जब अमेरिका से पीएल 480 गेहूँ मंगाने के लिए बाध्य थे हम। हमने वो दौर देखा है जब हमारे प्रधानमंत्री जी को कहना पड़ा था कि सप्ताह में एक दिन उपवास रखो। आज मेरे सामने समस्या है कि चावल और गेहूँ रखें कहाँ? अन्न के भंडार भरे हुए हैं।

कई चीज में हमें उत्पादन बढ़ाना है। अप्रैल से लेकर अगस्त तक की अवधि में हमारा एग्री एक्सपोर्ट 10% बढ़ा है। बासमती धूम मचा रहा है। रूस के उप-प्रधानमंत्री जी के साथ मेरी बैठक थी, जिसमें अनेक विषयों पर बात हुई। आलू और अनार पर उन्होंने कहा कि हमें पेस्ट-फ्री ज़ोन का चाहिए। हमने कहा कि हमारे यहाँ छोटी जोत का किसान है। लैंड होल्डिंग कम है इसलिए ऐसा ज़ोन बनाना असंभव है। लेकिन ये जरूर है कि पेस्ट-फ्री हो और इंसान को नुकसान न पहुँचे, इसकी गारंटी हम ले सकते हैं।

हम सब जानते हैं कि 140 करोड़ देशवासी 2050 तक 170 करोड़ हो जाएंगे। उनके लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना हमारी जवाबदारी है। उनकी आजीविका भी चलाना है। अमरीका, ऑस्ट्रेलिया में 10-15 हजार एकड़ के किसान हैं, हमारे यहाँ ढाई एकड़, पाँच एकड़ के किसान हैं। दुनिया की केवल 4% कृषि योग्य भूमि हमारे पास है। इसमें हम अपना पेट भर रहे हैं और दुनिया को भी खिला रहे हैं।

वन ट्रिलियन डॉलर के लक्ष्य के लिए हमें उत्पादन बढ़ाना पड़ेगा। जीएम सीड्स की अनुमति नहीं है, हमने जीनोम सीक्वेंसिंग से धान की दो नई किस्में ईजाद की हैं। गेहूँ में और चावल में हम दुनिया के समकक्ष हैं लेकिन दलहन और तिलहन में पीछे हैं। मैंने वैज्ञानिकों को टास्क दिया है। वो रिसर्च करते थे लेकिन जमीन से उसका कोई रिश्ता नहीं था। मैंने कहा कि आपकी रिसर्च का किसानों को क्या फायदा है। हमने विकसित कृषि संकल्प अभियान चलाया और किसानों की समस्या देखी।

मेरठ का किसान कहता है कि हमारा गन्ना लाल सड़न बीमारी ने खराब कर दिया, उनको इसका इलाज चाहिए। गुलाबी शुंडी कपास पर कहर बनकर टूटी। येलो मोजेक ने सोयाबीन बर्बाद कर दिया, हमें इसपर रिसर्च चाहिए। 500 मुद्दे ऐसे हैं जिसपर रिसर्च की जरूरत है। लैब में साइंटिस्ट बैठा है और खेत में किसान बैठा है, मैंने लैब से लैंड को जोड़ दिया। दिन रात हम कोशिश कर रहे हैं, उत्पादन बढ़ाना है तो लागत घटाना है। लागत नहीं कम हुई तो किसान को बचेगा क्या? उत्पादन का ठीक दाम देना है, नुकसान हो तो भरपाई करना है।

हमें डायवर्सीफिकेशन भी करना है। कई तरह की चीजें हैं जिससे निपटना पड़ेगा। बायो-स्टिम्यूलेन्ट के बारे में मुझे पता चला। 30 हजार बायो-स्टिम्यूलेन्ट बिक रहे थे। मैंने कहा कि इसका फायदा क्या है। इन लोगों ने कहा कि इसके लिए एक साल बढ़ाओ, एक साल खत्म होने के बाद फिर आ गए। मैंने केवल तीन महीने का समय दिया। मैंने कहा कि तीन जगह प्रयोग कर के सिद्ध करो कि फायदा क्या है। इसमें अगर कुछ निकला तो हम अनुमति देंगे।

इसके बाद 30 हजार में से 22 हजार तो पहले ही भाग गए। जो आये, उन्होंने टेस्टिंग की। अगर फायदा होगा तब तो उपयोगी है, नहीं तो जबरदस्ती क्यों दें। खरपतवार के कारण हमारा उत्पादन बहुत कम होता है। लेकिन इसमें दो चीजें जरूरी हैं। एक है पूरी तरह से सिद्ध होना चाहिए कि ये इंसान के लिए घटक तो नहीं है। हमें इन्हें पूरी तरह से सुरक्षित बनाना पड़ेगा। दूसरा है नकली उत्पाद। नंबर एक समस्या है किसान की घटिया पेस्टिसाइड। वो डालता है कोई असर ही नहीं होता, पैसा लग गया फायदा नहीं हुआ। फर्टिलाइजर तक नकली बना दिया भाई लोगों ने। राजस्थान में तो पत्थर के पाउडर को ही बेच दिया। सरकार का तो काम है ही इससे निपटने का लेकिन इंडस्ट्री का भी काम है। किसान कहते हैं कि ऐसा कोई यंत्र बन जाए जिससे असली और नकली का पता चल जाए।

एक समस्या है डीलर की, वो मनमानी दवाई दे देता है और किसान उसको डाल लेता है। पूरी इंडस्ट्री को खड़ा होना पड़ेगा कि नकली पर कार्रवाई हो। मुझे लगता है इसमें सरकार और ईमानदार इंडस्ट्री साथ आये। केवल लाभ कमाना हमारा उद्देश्य न हो। अगर हमने सुरक्षित खाद्यान्न हमने उपलब्ध करा दिया तो इससे बड़ी देशसेवा कोई और नहीं है।

हम केवल सम्मेलन का कर्मकांड न करें। गंभीरता से विचार करें और मिलकर समाधान निकालें। नवाचार और अनुसंधान को हम कैसे बढ़ावा दे सकते हैं, इसके लिए शोध चाहिए। कीट-पतंगे तुरंत अपने आप को बदल लेते हैं इसलिए नवाचार करना पड़ेगा। अपना देश केवल अपने लिए नहीं है, ये तेरा है ये मेरा है ऐसे सोच छोटे दिलवालों की होती है, बड़े हृदय वाले तो सोचते हैं सारा विश्व ही मेरा परिवार है। इसलिए भारत केवल भारत के लिए नहीं विश्व के लिए है। जीवन जीने का आनंद तभी है जब वो जीवन औरों के काम आये।

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