भोपाल: मेरे मन में ये कभी नहीं रहता की मैं मंत्री बनकर बहुत बड़ा आदमी बन गया। मेरे लिए तो बहनों की सेवा ही भगवान की पूजा है। अगर आपको कोई जिम्मेदारी मिली है तो ऐसा काम करो की लोगों की जिंदगी बदल जाए। लाड़ली बहना योजना तो बन गई और उसको कोई बदल भी नहीं सकता। पूरे भारत में अलग-अलग ढंग से इस योजना को लागू किया जा रहा है। आधी आबादी को पूरा न्याय है ये योजना।
धरती के संसाधनों पर औरत ज़ात का भी हक है। हवा, पानी, खेत, खनिज औरतों के भी हिस्से में है। बचपन से मैं देखता था बेटियों को परिवार में न्याय नहीं मिलता था। मन में तड़प होती थी कि एक ही भगवान ने आदमी और औरत बनाए तो औरत के साथ भेदभाव क्यों? जब मैं कुछ नहीं था, तब भी बहनों के लिए काम करता था। मैं जब सांसद-विधायक नहीं था, तब एक जग भाषण दे रहा था की बेटी को आने दो, बेटी है तो कल है। एक बूढ़ी अम्मा ने कहा की बड़ी बात करता है, बेटी का दहेज तू दिलवाएगा क्या? मेरे मन में लगा की आगे कुछ काम करना चाहिए, केवल भाषण देने से काम नहीं चलेगा।
मुख्यमंत्री बनने के बाद एक के बाद एक माताओं, बेटियों और बहनों के लिए योजनाएँ बनीं। लाड़ली लक्ष्मी योजना में हमने बेटियों को लखपति बनाया। स्थानीय निकाय चुनाव में बहनों को 50% रिजर्वेशन होना चाहिए जिससे उनका राजनीतिक सशक्तीकरण हो। लाड़ली बहना योजना इसलिए बनी जिनके पास संसाधन नहीं हैं, उनके खातों में पैसे आयें। ये खैरात नहीं है, न्याय है। अब दिवाली से 1,500 रुपये होने वाले हैं। 1,500 से अब 3,000 होने वाले हैं। जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा।
अलग-अलग राज्यों में ये योजना अलग-अलग नाम से है। ये योजना महिला सशक्तीकरण की प्रतीक बन गई। ये क्यों हुआ, ये तुम्हारे कारण हुआ। सबको पता है बहनें जाग गई हैं, इन्हें न्याय नहीं दिया तो ये छोड़ेंगी नहीं। लखपति दीदी का जो कॉन्सेप्ट है, प्रधानमंत्री जी ने भी कहा स्वसहायता समूहों को सशक्त बनाने के लिए केंद्र निरंतर काम कर रहा है। लाड़ली बहना लखपति दीदी बनेंगी। ये आपकी ताकत के कारण हुआ है। आज यहाँ दीदियाँ बोली हैं। वो कितने कॉन्फिडेंस से बोलती हैं, मन आनंद से भर जाता है।
पोषण जरूरी है, भोजन जरूरी है, पर्यावरण जरूरी है लेकिन आर्थिक सशक्तीकरण भी जरूरी है। रोटी चाहिए, रोजगार चाहिए। हाथ में पैसे नहीं होते तो कितने बेबस होते हैं। अगर धन न हो तो बच्चों की पढ़ाई नहीं होती। धन न हो तो नेटवर्क हाथ में नहीं होता।
आर्थिक सशक्तीकरण के लिए कृषि विभाग और ग्रामीण विकास विभाग की योजनाएँ हैं। मेरी ड्रोन दीदियाँ पेस्टिसाइड का छिड़काव ड्रोन से कर रही हैं। हमने 70 हजार कृषि सखी बनाई हैं और हमें एक लाख बहनों को कृषि सखी और बनाना है। वो केवल खेती नहीं करेंगी, वो किसानों को भी बटायेंगी की कैसे खेती करो। बैंक सखी - प्रधानमंत्री जी को हृदय से धन्यवाद देता हूँ, जनधन योजना से उनके खाते खुले, जो जानते ही नहीं थे इसके बारे में। पशु सखी पशुपालन सिखा रही हैं। अभी तो तुमने उड़ान भरी है आर्थिक प्रगति की, तुमको बहुत ऊंचाई तक जाना है।
हमें हिंदुस्तान की कृषि बदलना है, खेती में नए प्रयोग करना है। हमारा देश आज भी गाँव में है। है अपना हिंदुस्तान कहाँ, वो बसा हमारे गाँव में। खेती बहनों के बिना नहीं हो सकती। पुराने जमाने में जब पुरुष हल चलाते थे, तो उराई का काम बहनें करती थीं। फसल की कटाई बहनें करती थीं।
पशुपालन के लिए चारा, दही जमाना, दूध लगाना और मक्खन निकालना, ये सब बहनें करती हैं। खेती और पशुपालन अब भी बिना बहनों के नहीं हो सकता है। कई काम हम कर रहे हैं, हमें की और काम करना है। हमने दलहन मिशन शुरू किया है। दालों का उत्पादन हमें बढ़ाना है। दलहन की प्रोसेसिंग के लिए हमें 1 हजार दाल मिल खोलना है। दूध के क्षेत्र में अनंत संभावनाएँ हैं।
मैंने विदिशा में प्रयोग किया, भाग्योदय संस्था बनाई है जिससे 6 हजार बहनें जुड़ी हैं। हर जगह दुग्ध-उत्पादन और पशुपालन को बढ़ावा देना है। एक-दो एकड़ जमीन अपने पास है तो केवल फसल पर अपनी जिंदगी नहीं चल सकती है। हमें नए प्रयोग करना होंगे। हम मिलकर सोचें, स्वसहायता समूह सोचें की खेती में हम दस चीजें कैसे कर सकते हैं। इंटीग्रेटेड फ़ार्मिंग पर मैं प्रयोग कर रहा हूँ। मैंने ICAR के प्रांगण में भी एक मॉडल बनाया है। इस प्रयोग से भी मैं आपको अवगत करूँगा।








