रायसेन: भारत अत्यंत प्राचीन और महान राष्ट्र है। हमारा हजारों साल पुराना ज्ञात इतिहास है। जब आज के विकसित देशों में सभ्यता का सूर्योदय नहीं हुआ था, तब हमारे यहाँ ऋषियों ने वेदों की ऋचाएं रच दी थीं। हमारे ऋषियों ने कहा कि सबको अपने जैसा मानो। यहाँ से विचार निकला वसुधैव कुटुंबकम। ये अद्भुत धरती है। दुनिया अपनी पुरानी पीढ़ियों को नहीं जानती। जब हम तर्पण करते हैं तो केवल माता-पिता को या दादा-दादी को नहीं, अपने सभी पूर्वजों को जल समर्पित करते हैं। आज भी भारत के गाँव-गाँव में बच्चा-बच्चा कहता है धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो और विश्व का कल्याण हो। हमारा भारत सोने की चिड़िया कहलाता था। दूध-घी की नदियाँ बहती थीं। हमारा देश तकनीक में भी आगे था। जब दुनिया ने कल्पना भी नहीं की थी, तब हमारा यहाँ पुष्पक विमान था। भगवान कृष्ण सुदर्शन चक्र चलाते थे। आग्नेय अस्त्र, ब्रह्मास्त्र , कई तरह के अस्त्र थे। बीच में मुग़लों और अंग्रेजों ने राज किया और आजादी के बाद भी अपेक्षित विकास नहीं हुआ। क्योंकि नेहरू जी ने भारतीय संस्कृति, जीवन मूल्य और परंपराओं के अनुरूप विकास नहीं किया।
अपने देश में और कुछ हो न हो, पाँच साल, बारह महीने, सातों दिन चुनाव की तैयारी चलती रहती है। अभी डेढ़ साल में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान के चुनाव हुए, उसके बाद लोकसभा के चुनाव आ गए। लोकसभा चुनाव के बाद झारखंड, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा का चुनाव आया। इसके बाद दिल्ली का दंगल शुरू हुआ। दिल्ली के चुनाव के बाद बिहार में ताल ठोक रहे हैं। इसके बाद आएगा बंगाल और तमिलनाडू का चुनाव और फिर असम, फिर कर्नाटक, हिमाचल, फिर मध्यप्रदेश का चुनाव। मैं कृषि मंत्री बना तो सोचा काम में जुट जाऊंगा लेकिन मेरी ड्यूटी झारखंड के चुनाव में लग गई। प्रधानमंत्री जी, केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायक, सांसद सब चुनाव प्रचार में जाते हैं अलग-अलग प्रदेशों में। कल्पना करके देखो कितना समय बर्बाद होता है सभी का। इनको जनता का काम करना चाहिए कि चुनाव प्रचार में जाना चाहिए। सारी पार्टियों का ध्यान चुनाव जीतने में लगा रहता है।
चुनाव में कितना नुकसान होता है। चुनाव आता है तो वोटर लिस्ट बनने लगती है, और उसे बनाते हैं हमारे मास्टर साहब। पढ़ाई ठप हो जाती है। सरकारी ऑफिस जाओ, तो अफसर कहता है कि बाद में आना अभी चुनाव हैं। कलेक्टर, एसपी, डीएफओ, सब चुनाव में लगते हैं। आँगनवाड़ी कार्यकर्ता भी चुनाव में लगे होते हैं। कार्यकर्ता एक चुनाव से फुर्सत होते हैं, तो दूसरे चुनाव में जाते हैं। खर्च कितना होता है, पिछले पाँच साल में देखें तो साढ़े चार लाख करोड़ रुपये सरकार के खर्च हुए हैं। अगले चुनाव तक सात लाख करोड़ रुपये खर्च होंगे। ये जनता का और हमारा पैसा है, जो किसी अच्छे काम में लग सकता था। राजनीतिक दल अलग खर्च करते हैं। चुनाव प्रचार में खर्च होता है। गाड़ी आती हैं, उनसे धुआँ निकलता है, डीजल-पेट्रोल जलता है। कर्कश आवाज आती है, तुम्हारी पढ़ाई में भी डिस्टर्ब होता है। इसके बाद व्यापारी बंधुओं को भी चंदा देना पड़ता है। हर पार्टी चन्दा लेने आ जाती है। पार्टी तो आती ही है, निर्दलीय भी आ जाते हैं चन्दा लेने के लिए। ये पैसे किसी भले और अच्छे काम में भी लग सकते हैं।
चुनाव आया तो पुलिस भी व्यस्त हो जाती है। चुनाव बिहार में होंगे। ड्यूटी पूरे देश के अर्धसैनिक बलों की लगती है। जनता भगवान भरोसे हो जाती है। अगर संविधान में संशोधन कर के पाँच साल में एक बार लोकसभा और विधानसभा के चुनाव होंगे तो पैसा कितना बचेगा, पर्यावरण कितना बचेगा, संसाधन कितने बचेंगे। चुनाव प्रचार के लिए एक ही गाड़ी में विधायक प्रत्याशी का फ़ोटो और सांसद प्रत्याशी का फोटो, एक ही मंच हो, एक ही सभा हो, एक ही पर्चे हों। एक ही बूथ बने। अलग-अलग चुनाव में तो भाजपा का फायदा है क्योंकि हमारी समर्पित कार्यकर्ताओं की फौज है।
चुनाव में घोषणाओं की होड़ लगती है। एक पार्टी कहती है कि मैं तारे तोड़ कर ले आऊँगा, तो दूसरी पार्टी कहती है, मैं वो तारे तोड़ कर तुम्हारी जेब में रख दूंगा। देश के भले के लिए कड़े और बड़े फैसले नहीं लिए जाते। कोई नाराज न हो इसके लिए बड़े निर्णय नहीं लेते। इसके अलावा जब आचार संहिता लग जाती है, तो विकास के काम ठप हो जाते हैं। नए काम भी शुरू नहीं हो सकते! चुनाव जातिवाद बढ़ाता है। चुनाव के समय जाति याद आ जाती है। भाषावाद होने लगता है। जाति और जाति के साथ उप जाति। भाषावाद, प्रांतवाद, जातिवाद! जब बार बार चुनाव होते हैं तो युवाओं को मौका नहीं मिलता। कोई नेता एक चुनाव में नहीं जीत पाता, तो दूसरे चुनाव में कोशिश करता है।
बार-बार चुनाव कराने में केवल नुकसान ही नुकसान है। पाँच साल में केवल एक ही बार चुनाव होना चाहिए। कह दो भारत के नेताओं से, बहुत हो गया नाटक, संविधान में संशोधन करो और पाँच साल में एक बार चुनाव करो जिससे देश की प्रगति हो सके।








