नई दिल्ली: जब हमारा सम्मान हो रहा था, तब मैं सोच रहा था कि हम तो मेजबान हैं, जो नीचे बैठे हैं, उनको सम्मानित कर के हम अपने आप को धन्य मानते हैं। भारत अत्यंत प्राचीन और महान राष्ट्र है। जब पश्चिम के तथाकथित विकसित देशों में सभ्यता का सूर्योदय नहीं हुआ था, तब से बहुत पहले से हमारे यहाँ बीज भी थे और फसलें लहलहाती थीं। अगर चावल की बात की जाए, तो 30 हजार किसमें थीं।
गेहूं की बात करें, तो बचपन में हमने मुड़िया गेहूं देखा था। अब मुड़िया महाराज समाप्त हो गए, कठिया कहीं-कहीं देखने को मिलता है। शरबती पर भी खतरा है। अलग-अलग बीजों की किसमें जो पोषण के लिए बहुत उपयुक्त हैं। आजकल बायो फोरटिफ़ाइड तैयार करते हैं, लेकिन वो तो पहले से ही फोरटिफाइड थी। कम पानी में पैदा हो जाती थीं। धीरे धीरे वो विलुप्त होने की कगार पर पहुँच गई हैं। ऐसे में मैं उन किसानों का अभिनंदन करता हूँ, जिन्होंने उन्हें सहेज के रखने का महा पुण्य का कार्य किया है।
संरक्षण में की तरह की दिक्कत आती हैं। अभी प्रावधान कर दिया गया है कि संरक्षण करने के लिए 15 लाख रुपये की राशि दी जाएगी। दुनिया में भारत पहला देश है जिसने ये कानून बनाया कि बीजों की किस्मों, पादपों की किस्मों को संरक्षित करने वालों का ध्यान रखा जाए। बीज हमारा मौलिक अधिकार है। पहले बीज कंपनियों के बीज नहीं खरीदे जाते थे। मोटा बीज छानकर सुरक्षित रख देते थे और वही बीज बोवते थे।
जब से बीज की नई किसमें आई हैं, हम खुद कहते हैं कि तीन साल में बीज बदलो। इसमें कंपनियों के पास जाना पड़ता है। बीज बदलने का चक्र शुरू हो जाता है। पहले तो वर्षों तक बीज बदले नहीं गए, वही चलते रहे। एक बहस का विषय है, नई किस्में बनायें, लेकिन पुरानी किस्मों को भी सुरक्षित रख पाएं, इस ओर हमें ध्यान देना होगा। पादप जीनोम संरक्षक इसमें महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रहा है।
ये साधारण कानून नहीं है। इस कानून के बारे में कुछ चीजें हैं, आपने जो सुझाव दिए हैं, उस पर अमल करने का काम करेंगे। हर बैठक या कॉन्फ्रेंस में सुझाव निकलें, उस पर अमल करें तो तो सार्थकता है। जानकारी की अभी बहुत कमी है, आम किसान नहीं जानता, इसका व्यापक प्रचार प्रसार करने की जरूरत है। पंजीकरण की जो प्रक्रिया है, उसमें जो तकनीकी बाधा हैं, इसका समाधान जरूरी है। DUS परीक्षण जरूरी है पंजीकरण के लिए। यह छोटे किसानों के लिए जटिल और खर्चीला है। इससे ब्रीडरों का मनोबल गिरता है।
बेनीफिट शेयरिंग में पारदर्शिता की कमी है। किसानों को ठोस वित्तीय लाभ नहीं मिला है। अन्य कानून के साथ इसका बेहतर समन्वय भी हो। वैज्ञानिक डेटाबेस का भी अभाव है। इसका समाधान जरूरी है। किसान और व्यवसायिक ब्रीडरों का वर्गीकरण समान है, जबकि संसाधन देखें तो भारी अंतर है। किसानों संरक्षण की प्रक्रिया में पिछड़ते हैं। इस पर विचार करने की जरूरत है। किसानों के जो सुझाव आए हैं, उनका स्वागत करता हूँ। इसे बेहतर करने की दिशा में निश्चित कदम उठाए जाएंगे।
एक चीज मेरे मन में आई है। वंदे मातरम् का 150वाँ वर्ष चल रहा है। कृषि विभाग के कार्यक्रमों में वंदे मातरम् का पूर्ण गायन होना चाहिए। एक चीज है कि स्मृति चिन्ह देना बंद करना चाहिए। इससे व्यर्थ खर्च बचेगा।








